गुरुवार, 7 सितंबर 2017

ग़ज़ल (मगर आने से पहले कुछ इशारे भी किये होते)







ग़ज़ल (मगर  आने  से  पहले  कुछ  इशारे  भी  किये  होते)

किसी   के  दिल  में चुपके  से  रह  लेना  तो  जायज  है
मगर  आने  से  पहले  कुछ  इशारे  भी  किये  होते। 

नज़रों  से मिली नजरें  तो नज़रों में बसी सूरत  
काश हमको उस खुदाई के नजारे  भी दिए होते।

अपना हमसफ़र जाना ,इबादत भी करी जिनकी 
चलते  दो कदम संग में , सहारे भी दिए होते।

जीने का नजरिया फिर अपना कुछ अलग होता  
गर अपनी जिंदगी के गम , सारे दे दिए होते।

दिल को भी जला लेते ख्बाबों को जलाते  हम 
गर मुहब्बत में अँधेरे के इशारे जो किये होते।


मदन मोहन सक्सेना