शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

ग़ज़ल (बहुत मुश्किल )






गज़ल  (बहुत मुश्किल )

अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर
बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल
  
ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है
समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल

कहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हम
जुबां से दिल की बातों को है कह पाना बहुत मुश्किल

ज़माने से मिली ठोकर तो अपना हौसला बढता
अपनों से मिली ठोकर तो सह पाना बहुत मुश्किल

कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है
क्या खोया और क्या पाया कह पाना बहुत मुश्किल

ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शनिवारीय चर्चा मंच पर ।।

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  2. कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है
    क्या खोया और क्या पाया कह पाना बहुत मुश्किल .........

    हर पंक्तियाँ लाजवाब है..बधाई !!

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  3. बहुत सुन्दर गजल की पंक्तियाँ !
    (http://dehatrkj.blogspot.com)

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  4. ज़माने से मिली ठोकर तो अपना हौसला बढता
    अपनों से मिली ठोकर तो सह पाना बहुत मुश्किल

    बहुत खूब
    सुन्दर गजल

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