गुरुवार, 1 अगस्त 2013

ग़ज़ल (हार-जीत)






ग़ज़ल (हार-जीत)

पाने को आतुर रहतें हैं  खोने को तैयार नहीं है
जिम्मेदारी ने
मुहँ मोड़ा ,सुबिधाओं की जीत हो रही

साझा करने को ना मिलता , अपने गम में ग़मगीन हैं
स्वार्थ दिखा जिसमें भी यारों उससे केवल प्रीत हो रही

कहने का मतलब होता था ,अब ये बात पुरानी  है
जैसा देखा बैसी बातें  .जग की अब ये रीत हो रही

अब खेलों  में है  राजनीति और राजनीति ब्यापार हुई
मुश्किल अब है मालूम होना ,किस से किसकी मीत हो रही

क्यों अनजानापन लगता है अब, खुद के आज बसेरे में
संग साथ की हार हुई और  तन्हाई की जीत हो रही


ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

8 टिप्‍पणियां:

  1. सच है, पाना है कुछ तो कुछ खोना भी होगा ही!

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  2. क्यों अनजानापन लगता है अब, खुद के आज बसेरे में
    संग साथ की हार हुई और तन्हाई की जीत हो रही
    आज का कटु यथार्थ

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  3. अब खेलों में है राजनीति और राजनीति ब्यापार हुई
    मुश्किल अब है मालूम होना ,किस से किसकी मीत हो रही


    सच में बहुत खूब ...वाह

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  4. क्यों अनजानापन लगता है अब, खुद के आज बसेरे में
    संग साथ की हार हुई और तन्हाई की जीत हो रही katu satya ....

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  5. जी हां रीत बदल गई है..दरअसल जो कुछ लोगो की रीत थी वो बहुत लोगो की रीत बन गई है।

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