सोमवार, 8 जुलाई 2013

ग़ज़ल (मेरे मालिक मेरे मौला )

 
ग़ज़ल (मेरे मालिक मेरे मौला )
मेरे मालिक मेरे मौला ये क्या दुनिया बनाई है
किसी के पास खाने को  मगर बह खा नहीं पाये 
तेरी दुनियां में कुछ बंदें, करते काम क्यों गंदें
किसी के पास कुछ भी ना, भूखे पेट सो जाये 
जो सीधे सादे रहतें हैं मुश्किल में क्यों रहतें है
तेरी बातोँ को तू जाने, समझ अपनी ना कुछ आये
तुझे पाने की कोशिश में कहाँ कहाँ मैं नहीं घूमा
जब रोता बच्चा मुस्कराता है तू ही तू नजर आये
ना रिश्तों की महक दिखती ना बातोँ में ही दम दीखता
क्यों मायूसी ही मायूसी जिधर देखो नज़र आये 
गुजारिश अपनी सबसे है कि जीयो और जीने दो
ये जीवन कुछ पलों का है पता कब मौत आ जाये
मेरे मालिक मेरे मौला ये क्या दुनिया बनाई है
किसी के पास खाने को  मगर बह खा नहीं पाये
ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

4 टिप्‍पणियां:

  1. मेरे मालिक मेरे मौला ये क्या दुनिया बनाई है
    किसी के पास खाने को मगर बह खा नहीं पाये

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    1. प्रोत्साहन के लिए आपका हृदयसे आभार .सदैव मेरे ब्लौग आप का स्वागत है !

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  2. उत्तर
    1. प्रोत्साहन के लिए आपका हृदयसे आभार .सदैव मेरे ब्लौग आप का स्वागत है !

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