ग़ज़ल (चार पल)
प्यार की हर बात से महरूम हो गए आज हम
दर्द की खुशबु भी देखो आ रही है फूल
से
दर्द का तोहफा मिला हमको दोस्ती
के नाम पर
दोस्तों के बीच में हम जी रहे थे भूल
से
बँट गयी सारी जमी फिर बँट गया ये
आसमान
अब खुदा बँटने लगा है इस तरह की तूल
से
सेक्स की रंगीनियों के आज के इस दौर
में
स्वार्थ की तालीम अब मिलने लगी स्कूल
से
आगमन नए दौर का आप जिस को कह रहे
आजकल का ये समय भटका हुआ है मूल से
चार पल की जिंदगी में चाँद सांसो का
सफ़र
मिलना तो आखिर है मदन इस धरा की धूल से
ग़ज़ल प्रस्तुति:
bahut khoob sir.....
जवाब देंहटाएंअनेकानेक धन्यवाद सकारात्मक टिप्पणी हेतु.
हटाएंबहुत सुन्दर .....
जवाब देंहटाएंआगमन नए दौर का आप जिस को कह रहे
आजकल का ये समय भटका हुआ है मूल से....यथार्थ !!