बुधवार, 10 जुलाई 2013

ग़ज़ल (बात करते हैं )






गज़ल (बात करते हैं )

सजाए  मौत  का तोहफा  हमने पा लिया  जिनसे 
ना जाने क्यों बो अब हमसे कफ़न उधार दिलाने  की बात करते हैं 

हुए दुनिया से  बेगाने हम जिनके इक  इशारे पर 
ना जाने क्यों बो अब हमसे ज़माने की बात करते हैं

दर्दे दिल मिला उनसे बो हमको प्यारा ही लगता
जख्मो पर बो हमसे अब मरहम लगाने की बात करते हैं

हमेशा साथ चलने की दिलासा हमको दी जिसने
बीते कल को हमसे बो अब चुराने की बात करते हैं

नजरें  जब मिली उनसे तो चर्चा हो गयी अपनी 
न जाने क्यों बो अब हमसे प्यार छुपाने की बात करते हैं

ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना

12 टिप्‍पणियां:

  1. Bahut sundar! Kya mai inse kuchh galtiyan sudhar ne kee jurrat kar sakti hun? Kripaya ise anyatha na len!
    Jaise ki 'mot' nahi maut' sahi uchharan hai.
    'Udhar' nahi 'udhaar' sahi hai.
    "chalneka' dilasa, na ki 'chalnekee'.
    Ab aapke blog ka anusaran karne ja rahee hun.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अनेकानेक धन्यवाद सकारात्मक टिप्पणी हेतु.

      हटाएं
  2. उम्दा प्रस्तुति के लिए बधाई |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रोत्साहन के लिए आपका हृदयसे आभार .सदैव मेरे ब्लौग आप का स्वागत है !

      हटाएं
  3. उत्तर
    1. आभारी हूँ ! सदैव मेरे ब्लौग आप का स्वागत है !!

      हटाएं
  4. उत्तर
    1. प्रतिक्रियार्थ आभारी हूँ ! सदैव मेरे ब्लौग आप का स्वागत है !!

      हटाएं
  5. उत्तर
    1. प्रतिक्रियार्थ आभारी हूँ ! सदैव मेरे ब्लौग आप का स्वागत है !!

      हटाएं